कबीर की सामाजिक दृष्टि और उसकी वर्तमान प्रासंगिकता
Keywords:
कबीर, सामाजिक दर्शन, जाति-पाति, धार्मिक सहिष्णुता, निर्गुण भक्ति, समाज सुधार, साम्प्रदायिकता, मानवता, भक्ति आंदोलन, वर्णाश्रम विरोध, सामाजिक समानताAbstract
कबीर का सामाजिक दर्शन उनके युग की जटिल सामाजिक परिस्थितियों को समझने और सुधारने का प्रयास करता है। उन्होंने जाति-पाति, ऊँच-नीच, छुआछूत और धार्मिक कट्टरता जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और समाज में समानता, प्रेम, और सहिष्णुता का संदेश दिया। कबीर का विद्रोह केवल धार्मिक और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ था, न कि संपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध। उन्होंने ब्राह्मणवादी वर्चस्व, कर्मकांड, और धार्मिक पाखंड पर कड़ा प्रहार किया, लेकिन उनके विचार केवल आलोचना तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने मानवता पर आधारित एक नए समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की। उनकी निर्गुण भक्ति ने जातिगत और धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने का मार्ग दिखाया। आधुनिक समाज में भी, जहां साम्प्रदायिकता और सामाजिक असमानता की समस्याएँ विद्यमान हैं, कबीर के विचार पहले से अधिक प्रासंगिक और आवश्यक हो गए हैं।