भारतीय साहित्य में नारीः आदिकाल से आधुनिक काल तक का यात्रा-वृत्तांत
Keywords:
भारतीय नारी, नारी अस्मिता, हिंदी साहित्य, आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल, स्त्री-विमर्श, सामाजिक परिवर्तन, नारी स्वतंत्रता ।Abstract
भारतीय साहित्य में नारी का चित्रण आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक विभिन्न रूपों में किया गया है। प्रारंभ में नारी को देवी या शक्ति के रूप में पूजनीय माना गया, जबकि भक्तिकाल में उसे माया और पतन का कारण कहा गया। रीतिकाल में वह केवल श्रृंगार और भोग की वस्तु बनी रही, लेकिन आधुनिक काल में नारी के अधिकारों, स्वतंत्रता, शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर विमर्श होने लगे। साहित्य में नारी का स्थान समाज में उसकी स्थिति को दर्शाता है, और यह स्पष्ट होता है कि समय के साथ नारी की भूमिका और अधिकारों को लेकर सोच विकसित हुई है। भारतेन्दु युग से लेकर आधुनिक हिंदी साहित्य तक, नारी को केवल भावनात्मक या भोग्य वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि एक विचारशील और स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किया गया है। इस परिवर्तन में सामाजिक सुधार आंदोलनों और साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिन्होंने नारी की वास्तविक स्थिति और अधिकारों के लिए आवाज उठाई।





