कबीर का सामाजिक दर्शन और मध्ययुगीन समाज की स्थिति

Authors

  • Sumna Devi Author
  • Dr.Manish Kumar Author

Keywords:

कबीर, सामाजिक दर्शन, भक्ति आंदोलन, निर्गुण भक्ति, जाति-विरोध, सामाजिक समानता, धार्मिक सहिष्णुता, मध्ययुगीन भारत, सत्ता विरोध, समाज सुधार।

Abstract

कबीर का सामाजिक दर्शन मध्ययुगीन समाज की विषम परिस्थितियों का प्रतिबिंब है, जिसमें धार्मिक कट्टरता, सामाजिक अन्याय, जाति-व्यवस्था और शासकों की निरंकुशता हावी थी। कबीर ने अपने दोहों और साखियों के माध्यम से न केवल सामाजिक और धार्मिक पाखंडों की आलोचना की, बल्कि एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ समानता, मानवता, और भक्ति पर आधारित सामाजिक समरसता हो। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के रूढ़िवाद का विरोध करते हुए निर्गुण भक्ति का मार्ग अपनाया, जो जाति और संप्रदाय से परे था। कबीर का चिंतन केवल धार्मिक उपदेश तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने तत्कालीन समाज की संरचना, आर्थिक विषमता, सत्ता के अत्याचार और जनसाधारण की पीड़ा को भी मुखरता से व्यक्त किया। उनकी वाणी में विद्रोह और सुधार दोनों का स्वर सुनाई देता है, जो न केवल उनके समय में प्रासंगिक था, बल्कि आधुनिक समाज के लिए भी प्रेरणादायक है।

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Published

2023-10-06