समकालीन कवियों की रचनाओं में पर्यावरण सरं क्षण के सामाविक सरोकार
Keywords:
पर्यावरण, जलवायु, परिवेश, समकालीन कवि, मानवीय व्यवहार, प्रदूषण, पर्यावरणीय चेतना।Abstract
समकालीन कविताओं के लेखन का मुख्य आयाम 'आम आदमी' के जीवन की व्यथा है। वर्तमान समय में 1960 के बाद समकालीन परिवेश की हर इकाई में प्रकृति, पर्यावरण, संसाधनों के संरक्षण, वैश्विक उथल पुथल आदि ने कविताओं के सृजन में स्थान पाया। इन कविताओं की विशेषता यह रही कि कवियों के पर्यावरण, प्रयावार्ण संरक्षण के साथ ही पर्यावर्णीय प्रदूषण के प्रति चिंता भाव व्यक्त होने लगे। समकालीन बहुत से कवियों ने पर्यावरण विषयक संचेतना को कविताओं के सृजन में स्थान दिया। सामाजिक चेतना को जागृत करने में साहित्यकार जितनी बड़ी भूमिका निभाते हैं शायद ही समाज का कोई वर्ग उतनी बड़ी भूमिका निभा पाए 1 हम युगों युगों से देखें आ रहे हैं कि साहित्य और समाज के बीच गहरा रिश्ता रहा है। एक कुशल साहित्यकार समाज की प्रगति से हर समय जुड़ा रहता है I वही दूसरी तरफ उसका ध्यान समाज की प्रगति मेंबाधक तत्वों पर भी रहता है। समाज का जिम्मेदार एवं संवेदनशील व्यक्ति ही समाज के इस अहसास से जुड़ता है। इस शोध शीर्षक के अंतर्गत यही अनुसंधान किया जाएगा कि समकालीन कविता मेंपर्यावरण संरक्षण की संचेतना कवियों द्वारा कैसे व्यक्त की जा रही है। वर्तमान समय की कविता में कवि तथा कवयित्रियों ने प्रकृति प्रेम प्रदर्शित करते हुए प्रदूषण दूर कराने अथवा पर्यावरण के प्रति सजगता बरतने के लिए अपनी कविताओं के माध्यम सेकौन से उपाय सुझाए हैं। ऐसे ही सामाजिक रूप से सवेदनशील मुद्दों पर अध्ययन इस चयनित विषय के अंतर्गत किया जाएगा।